कुलवधू

कपड़ों और गहनों से लाद
जिम्मेदारी की नई चादर में लपेट 
महत्वाकांक्षाओं के जाल में फाँस
लाई जाती है जब बहू
कभी गिरती , कभी संभलती
जिम्मेदारी की चादर में उलझ-उलझ 
हो जाती है जब परेशान
तब मायके का उलाहना दे
शादी में हुई ऊँच-नीच को गिना 
बहू को किया जाता है शर्मिन्दा
मनोबल को तोड़कर 
धीरज को निचोड़कर 
रक्त को चूसकर 
कभी जला दी जाती है
तो कभी गुलामी की जंजीर में बाँधकर
उसे नकेल पहना दी जाती है
जो कर देती है इससे विद्रोह 
कहलाती है कुलकलंकिनी ,
मर्यादाओं को तोड़ती,
पथभ्रष्टा, मनमौजी ,
परिवार और पति से तिरस्कृत 
अपने भाग्य को रोती
और जो लेती है , बुद्धि से काम 
ईट का जवाब पत्थर से देने का मन बनाती
पर खामोश रह जाती 
आनेवाला प्रहार हँस-हँसकर सहती
अपने कर्तव्य में लीन
सास-ससुर, परिवार की सेवा में विलीन,
बैठाती है परिवार में सामंजस्य ,
कहलाती है कुलवधू 
पाती है स्नेह 
संघर्ष में जोड़ती है परिवार 
होती है परिवार की रानी !
पति की महारानी !!
                               प्रतिभा प्रसाद |





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