चुभन

क्यूँ बात किसी की दिल को चुभती है?
हूँ निर्विकार दर्द से
कुछ ऐसा करना है
कान बंद कर लूँ,
ऐसा हो नहीं सकता 
चुपचाप सी रह लूँ ,
ऐसा हो नहीं सकता 
बात बुरी क्यूँ लगती,
यह सोचा करती हूँ
मन ही मन में इसे ख़ूब गुनती हूँ
दिल कहता है तुम छोड़ो 
ये मेरी बात है
दिल के दरवाज़े मेरे 
में कैसे बंद कर लूँ ?
काँटों को दिल को
कैसे छूने दूँ ?
लहूलुहान दिल मेरा 
मैं कैसे देखूंगी ?
इसे बचाकर रखना 
जरूरत है मेरी
मैं जिंदा हूँ इससे ,
यह मुझेमें जिंदा है
है प्रार्थना तुमसे,
कांटे समेट लो अपने 
मुझे खुलकर जीने दो !!
                                      प्रतिभा प्रसाद | 

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