हे सरस्वती !
ज्ञान तू देना
विद्यादान तू देना
भर दे मेरी कलम में ऐसी कुछ ताकत
मिटा दूँ इस दुनिया से भ्रस्टाचार , घूसखोरी
अत्याचार - अनाचार की इस धरती पर
युद्ध से त्रस्त मानव को
शांति अमन चैन की राह दिखा सकूँ
मानव को मानव से लड़ने से बचा सकूँ
आज तो जंगल और पशु भी
भयभीत हैं मानव से
उन्हें भी चाहिए त्राण
मानव को प्राण
युद्ध की विभीषिका से
वेदना में असमर्थ
जंगल वन पशु पक्षी
और पर्वत भी चिंतित हैं
मेरी कमल की ओर उनकी भी निगाह है
मुरझाए हुए पौधे
विलुप्त होते पशुधन
चुपचाप नयनों की भाषा में कह जाते हैं
कुछ मेरे लिए भी सोचो
मैं भी तुम्हारी सोचता हूँ
तुम्हारा ही कल्याण करता हूँ
मुरझाए हुए पौधे
विलुप्त होते पशुधन
चुपचाप नयनों की भाषा में कह जाते हैं
कुछ मेरे लिए भी सोचो
मैं भी तुम्हारी सोचता हूँ
तुम्हारा ही कल्याण करता हूँ
आज विवश हो तुम्हारी ओर निहार रहा हूँ
कुछ आशा के क्षण मेरे भी हैं
यह तुम भी समझो
परमाणु के विस्फोट से
कुछ आशा के क्षण मेरे भी हैं
यह तुम भी समझो
परमाणु के विस्फोट से
मैं भी काँप जाता हूँ
काँप उठती है मेरी रूह
विध्वंस के बाद कैसी होगी शांति ?
क्या तुम जानते हो ?
यह है एक प्रश्न अनुतरित
यदि हो तुम्हारे पास इसका जवाब
हे सरस्वती माता ! मुझे बता देना
देना मेरी कलम में इतनी ताकत
दुनिया- ब्रह्माण्ड को बता सकूँ
ऐसी है अभिलाषा !
क्या तुम इसे पूरा करोगी ?
मुझे ज्ञान का दान चाहिए
अपनी कलम में ऐसी ताकत चाहिए
तुम्हारा प्रभुत्व इस दुनिया को दिखा सकूँ
ऐसा ज्ञान चाहिए
हे माता ! ऐसा ज्ञान चाहिए |
प्रतिभा प्रसाद |
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