उद्देश्य

दिशा-दिशा का शोर यहाँ है
मंज़िल भूला-बिसरा है
शिक्षा-दीक्षा को भूल-भालकर
शहर-शहर की भटकन है
पहले तय कर लो
किस मंज़िल जाना चाह रहे 
मंज़िल पाना ही उद्देश्य हो
राह स्वयं पा जाओगे 
मत भूलो तुम शक्ति अपनी 
नया कोई इतिहास रचो 
जो तुमसे आज भाग रहे हैं
कल गले लगाने आएँगे
अपनी ग़लती पर पछताते तो
वह भी आगे बढ़ जाते 
चुन लिया जब राहों का कांटा
फूल स्वयं पा जाओगे 
फूलों से आँचल भरकर 
जग को महकाओगे !!
                                       प्रतिभा प्रसाद |

No comments:

Post a Comment