जग बदला है दुनिया बदली
घर की नारी दफ्तर चली
हाथ उसके बैग टंगा है
कांधे ऊपर पल्ला
माथे से पसीना चूता
देख रही बस की राह
चौका-चूल्हा कर चली है
आकर फिर चौका-चूल्हा
मुन्ने का है गृहकार्य और
पतिदेव का राशन पानी
आपस में बस देखा-देखी
नहीं प्रेम की दो बतियाँ
मन भी सुखा , तन भी रुखा
दौड़भाग के जीवन में
हे नारी तू कभी न करना
ऐसी भागमभाग कभी
अपने लिए भी दो पल जीना
जो है तेरा भाग्य सखी !!
प्रतिभा प्रसाद |
घर की नारी दफ्तर चली
हाथ उसके बैग टंगा है
कांधे ऊपर पल्ला
माथे से पसीना चूता
देख रही बस की राह
चौका-चूल्हा कर चली है
आकर फिर चौका-चूल्हा
मुन्ने का है गृहकार्य और
पतिदेव का राशन पानी
आपस में बस देखा-देखी
नहीं प्रेम की दो बतियाँ
मन भी सुखा , तन भी रुखा
दौड़भाग के जीवन में
हे नारी तू कभी न करना
ऐसी भागमभाग कभी
अपने लिए भी दो पल जीना
जो है तेरा भाग्य सखी !!
प्रतिभा प्रसाद |
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