नारी का रूप -1

जग बदला है दुनिया बदली 
घर की नारी दफ्तर चली 
हाथ उसके बैग टंगा है 
कांधे ऊपर पल्ला 
माथे से पसीना चूता 
देख रही बस की राह
चौका-चूल्हा कर चली है 
आकर फिर चौका-चूल्हा
मुन्ने का है गृहकार्य और 
पतिदेव का राशन पानी 
आपस में बस देखा-देखी 
नहीं प्रेम की दो बतियाँ 
मन भी सुखा , तन भी रुखा 
दौड़भाग के जीवन में 
हे नारी तू कभी न करना 
ऐसी भागमभाग कभी 
अपने लिए भी दो पल जीना 
जो है तेरा भाग्य सखी !!
                                             प्रतिभा प्रसाद |

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