तीन मित्र

बात है तीस साल पुरानी
तब अंग्रेजी थी थोड़ी अनजानी 
मैट्रिक में जब हम हुए पास 
मम्मी से मिली एक आस 
जाने देगी वे हमें सिनेमा फ्री पास 
कर्पूरी डिवीजन से पास होने का दुःख 
उन्हें सालता रहा लगातार 
वक्त कई मार थी
बार-बार
लगातार 
फेल होने का क्रम 
अब रह गया था सिर्फ भ्रम 
हम तीन मित्र मचलते गीत गाते 
जा रहे थे सड़क उस पार 
रास्ते में मील गए एक सरदार 
थी उन्हें भी पिक्चर कई टिकट कटानी
उन्होंने हम तीनों को बहलाया 
बार बार पोल्हाया 
हम भी गए पिघल 
उनकी भी टिकट कटाई 
साथ ही पिक्चर दिखाई 
समझ न आ रहा था हम सबों को कुछ
थी क्योंकि वह अंग्रेजी फिल्म 
सरदार जी गुनगुना रहे थे
मस्ती में झूम रहे थे
कभी-कभी उछल पड़ते 
उन्हें देखकर हमने भी
एक बार उछलना जरूरी समझा 
वर्ना हमारी पोल उनके सामने खुलनी थी
बेड़ा ग़र्क होना था
अगले सीन में जब हीरो पीटा जा रहा था
हीरोइन को विलेन धकिया रहा था 
हम बारी-बारी उछले तालियाँ बजाई
ये अलग बात थी
कि हाँल में सिर्फ हमारी ही ताली गूंजी 
सरदारजी ने हम तीनों को घुर-घुर कर देखा 
पिक्चर कि समाप्ति पर
उन्होंने हम तीनों को पकड़ा 
एक-एक को बारी-बारी से बुलाया 
फैन्टा पिलाया और पिक्चर की कहानी सुनी
हम तीनों हँसते हुए घर लौटे 
नाहक सरदारजी से डर रहे थे 
वे ख़ुद कहाँ पिक्चर समझ रहे थे 
यदि समझते ,
तो क्या बारी-बारी हम तीनों से कहानी सुनते !
अगले महीने कॉलेज में क्लास शुरू हुई 
अंग्रेजी के पीरियड में
वही सरदारजी क्लास लेने पहुंचे 
पहली बेंच पर हम तीनों विराजमान थे
कहना न होगा हम तीनों की क्या हालत थी!
क्लास से निकलकर 
सर(दार) ने बताया 
कहानी कुछ चौथी ही थी !
                                       प्रतिभा प्रसाद |
 





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