तलाश

कुछ जोड़ी नम आँखें और ख़ाली हाथ 
तलाश रहे थे किसी की मदद का साथ 
हफ्तों , महीनों गुज़र गए 
इंतज़ार में सब ठहर गए 
आश्वासनों का पुलिंदा 
और कुछ सरकारी लोग
इधर का माल उधर 
क्या कर पाएँगे भोग 
दो पथिक अनजाने से मिले तब अनायास 
मन लालायित था करने को कुछ प्रयास 
अब दो से चार हाथ ,
थे साथ दो मन 
मन में अडिग विश्वास था,
थे साथ में तन 
बाढ़ में जो घर बहे ,
भूकंप में घर ढहे 
वह सब तुम पा जाओगे ,
मन यह सबसे कहे 
चार हाथ से दस हुए ,
दस से हुए बीस
एक आंधी चल पड़ी ,
बुझने लगी मन की टीस
एक आस की मशाल थी,
दूजा था विश्वास 
घर पर घर बन चले ,
रंग लाया प्रयास 
तुम भी आज़मा कर देख लो, 
लो हाथ मशाल 
कदमों में झुक जाएगा 
प्रेम बन विशाल !!
                                        प्रतिभा प्रसाद |

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