सुख

सागर की लहरों को देखो 
कुछ सीखो कुछ समझो तुम 
बार-बार वे आती हैं
फिर सागर में ही समाती हैं
किनारों को छू-छूकर
अपना हक़ जतलाती हैं
सौग़ात में किनारे को
ढेरों सीपियाँ दे जाती हैं
मोतियों से भर आँचल को
लौट समुद्र में जाती हैं
नहीं कुछ वे किनारे से लेतीं 
जीवन की सीख हमें देती हैं
देने में जो सुख मिलता है
लेने में वह किसे मिला !
                                     प्रतिभा प्रसाद |
 

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