मन क्यूँ नहीं भींगता

आज हमें फिर होली की याद आई है      
पतझड़ के बाद फिर जीवन में बहार आई है 
लाई है संग अपने सपने और रंग 
रिश्तों की खुशबू अपनों की गंध 
फूलों की चादर में लिपटा बसंत 
अवगुंठन से बाहर निकलने का मन 
मुट्ठी भर गुलाल रंग दे मन 
तन भींगता बार-बार ख़ाली है मन 
आज हमें फिर याद आता है बचपन 
बचपन की होली और होली का रंग 
मन को भिंगोता था, तन को भिंगोता था 
दिन भर के हुल्लड़ में रमता था मन 
बाबूजी की डांट और अम्मा का दुलार 
बुआ और मौसी और दादी का प्यार 
दीदी की झिड़की और चाची का स्नेह 
दादा का गुस्सा और चाचा की मार
फिर भी मन भींगता था रंगों के संग 
अब भी तन मन भींगता है होली के संग
मन क्यूँ नहीं भींगता यही है प्रश्न !
                                                    प्रतिभा प्रसाद |

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