भक्त ने प्रभु से कहा ,
प्रभु! आपने गंगा को
धरती पर लाने के लिए
भागीरथ के परिवार के
वारे-न्यारे कर दिए
गंगा ने उन्हें तार दिया
यदि आज की बात होती
तो गंगा को धरती पर
लाने के टेंडर से करोड़ों कमाता
पर अब क्या करूँ ?
कोई और उपाय बताइए
मुझे भी धन्य कर जाइए !
प्रभु ने हंसकर कहा ,
मुर्ख ! मैं भक्त के दिल में बसता हूँ
उसकी इच्छा के लिए
स्वयं को समर्पित करता हूँ
तब न होते थे टेंडर , न घूसखोरी
ये तो तुम्हारी कल्पना है
मुझे क्यों घसीट रहे हो?
हृदय से मेरा ध्यान करो
मेरी भक्ति में मन लगाओ
लक्ष्मी की लालसा छोड़ो
लक्ष्मी धरी रह जाएगी
तुम्हारे बंधु-बांधवों को,
आपस में लडवाएगी
स्वयं में बैठे-बैठे दुखी हुआ करोगे
मुझे भी कोसा करोगे
हे भक्त ! मान जाओ
मुझे इस दुविधा से निकालो
तुम्हारे कल्याण की आड़ में
तुम्हारा अहित कर जाऊँगा
कलियुग में मेरे प्रति
लोगों का विश्वास लड़खड़ाएगा
मैं अपने स्वर्ग में किसे क्या जवाब दूंगा
हे मानव ! मानव को प्यार कर
मेरी भक्ति कर
लक्ष्मी का लोभ त्याग दे, मैं प्रसन्न हो जाऊँगा
तुम्हें आजीवन भक्ति का वरदान दे जाऊँगा
इस दुविधा से निकल आऊंगा
अब भक्त भी दुविधा में पड़ गया
कुटुंब के कल्याण की जगह विनाश हो जाएगा
वह कैसे देख पाएगा?
पर विष्णु जी की पत्नी को लग गया यह बुरा
उन्होंने सोचा , वैसे तो दुनिया में
मेरी महिमा कम हो जायेगी
लोग आपस में न लड़ें तो
स्वर्ग का बाक़ी प्रत्येक विभाग ख़ाली रह जाएगा
मानव के प्रति उदार प्रभु की निष्टा भंग करनी होगी
इन्सान को लक्ष्मी के दर्शन कराने होंगे
भौतिक सुख-सुविधा भेंट करानी होगी
उन्हें दिग्भ्रमित करने में ही है अपनी भलाई
वे आपस में लड़ते रहेंगे
इंद्र भी सुरक्षित रहेंगे
हम भी चैन आराम से रास-रंग में डूबे रहेंगे
सो, उन्होंने समझाया
कहा, प्रभु क्यों अपना भेजा भिड़ाते हो
भक्त जो मांगता है, क्यूँ नहीं दे जाते हो?
नाहक समय बर्बाद करते हो
अन्तर्यामी प्रभु ने सब जान लिया
मन ही मन लक्ष्मी की मंशा को पहचान लिया
मुस्कुराए और कहा, तुम मेरी अर्धांगिनी हो
मुझे ठीक पहचानती हो
भक्त को लक्ष्मी के दर्शन जरुर कराऊंगा
तुम्हारा कहना मानूंगा
न माना तो स्वर्ग में कहाँ टिक पाऊंगा
तब स्वर्ग , स्वर्ग न रह जाएगा
पृथ्वी कहलाएगा
सो हे प्रिये ! तुम्हारी मंशा पूरी होगी |
'तथास्तु' कहा
और अपनी प्रिया के संग अंतर्धान हो गए !!
प्रतिभा प्रसाद |
प्रभु! आपने गंगा को
धरती पर लाने के लिए
भागीरथ के परिवार के
वारे-न्यारे कर दिए
गंगा ने उन्हें तार दिया
यदि आज की बात होती
तो गंगा को धरती पर
लाने के टेंडर से करोड़ों कमाता
पर अब क्या करूँ ?
कोई और उपाय बताइए
मुझे भी धन्य कर जाइए !
प्रभु ने हंसकर कहा ,
मुर्ख ! मैं भक्त के दिल में बसता हूँ
उसकी इच्छा के लिए
स्वयं को समर्पित करता हूँ
तब न होते थे टेंडर , न घूसखोरी
ये तो तुम्हारी कल्पना है
मुझे क्यों घसीट रहे हो?
हृदय से मेरा ध्यान करो
मेरी भक्ति में मन लगाओ
लक्ष्मी की लालसा छोड़ो
लक्ष्मी धरी रह जाएगी
तुम्हारे बंधु-बांधवों को,
आपस में लडवाएगी
स्वयं में बैठे-बैठे दुखी हुआ करोगे
मुझे भी कोसा करोगे
हे भक्त ! मान जाओ
मुझे इस दुविधा से निकालो
तुम्हारे कल्याण की आड़ में
तुम्हारा अहित कर जाऊँगा
कलियुग में मेरे प्रति
लोगों का विश्वास लड़खड़ाएगा
मैं अपने स्वर्ग में किसे क्या जवाब दूंगा
हे मानव ! मानव को प्यार कर
मेरी भक्ति कर
लक्ष्मी का लोभ त्याग दे, मैं प्रसन्न हो जाऊँगा
तुम्हें आजीवन भक्ति का वरदान दे जाऊँगा
इस दुविधा से निकल आऊंगा
अब भक्त भी दुविधा में पड़ गया
कुटुंब के कल्याण की जगह विनाश हो जाएगा
वह कैसे देख पाएगा?
पर विष्णु जी की पत्नी को लग गया यह बुरा
उन्होंने सोचा , वैसे तो दुनिया में
मेरी महिमा कम हो जायेगी
लोग आपस में न लड़ें तो
स्वर्ग का बाक़ी प्रत्येक विभाग ख़ाली रह जाएगा
मानव के प्रति उदार प्रभु की निष्टा भंग करनी होगी
इन्सान को लक्ष्मी के दर्शन कराने होंगे
भौतिक सुख-सुविधा भेंट करानी होगी
उन्हें दिग्भ्रमित करने में ही है अपनी भलाई
वे आपस में लड़ते रहेंगे
इंद्र भी सुरक्षित रहेंगे
हम भी चैन आराम से रास-रंग में डूबे रहेंगे
सो, उन्होंने समझाया
कहा, प्रभु क्यों अपना भेजा भिड़ाते हो
भक्त जो मांगता है, क्यूँ नहीं दे जाते हो?
नाहक समय बर्बाद करते हो
अन्तर्यामी प्रभु ने सब जान लिया
मन ही मन लक्ष्मी की मंशा को पहचान लिया
मुस्कुराए और कहा, तुम मेरी अर्धांगिनी हो
मुझे ठीक पहचानती हो
भक्त को लक्ष्मी के दर्शन जरुर कराऊंगा
तुम्हारा कहना मानूंगा
न माना तो स्वर्ग में कहाँ टिक पाऊंगा
तब स्वर्ग , स्वर्ग न रह जाएगा
पृथ्वी कहलाएगा
सो हे प्रिये ! तुम्हारी मंशा पूरी होगी |
'तथास्तु' कहा
और अपनी प्रिया के संग अंतर्धान हो गए !!
प्रतिभा प्रसाद |
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