मैं जब- जब अन्दर होती हूँ
तू हँसती है , गुनगुनाती है
खिल -खिल सी जाती है
मुझको थपकाती है , लोरी सुनाती है
फिर पापा के कहने से
तू एक 'टेस्ट' कराती है
जैसे ही तुझे पता चलता है
कि मैं एक कन्या भ्रूण हूँ
तू छटपटाती है
रुआँसी हो जाती है
मुझसे छुटकारा पाती है
ऐ माँ तू मुझको धरती पर ला
तेरा हाथ बँटाॐगी
दानवता से तपती धरती को
मानवता से नहलाऊँगी
तेरी ही तरह इस धरती को
औलादों से पाटूँगी
संतुलन समाज का बना रहे
ऐसा कुछ कर जाऊँगी !!
प्रतिभा प्रसाद
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