पुरुष की सत्ता

भक्त तपस्या में लीन था 
प्रभु की महिमा में विलीन था ,
याचक बन खड़ा था 
अजर-अमर होने के लिए 
प्रार्थना पर अड़ा था 
प्रभु दुविधा में लीन थे 
जानते थे 
ज्यादा दिनों की है ये मंशा नहीं 
फिर स्वयं मुझे पुकारेगा 
मृत्यु का याचक भिखारी होगा 
तब वरदान कैसे वापस लूँगा ?
इसे जीवन से मुक्ति कैसे दूंगा ?
प्रभु ने भक्त को समझाया 
जीवन का भय दिखाया 
कहा , जब  नौकरी नहीं मिलेगी 
बच्चे भूख से चिल्लाएँगे 
सास-बहू के झगड़े में पीसे जाओगे 
क्या तब भी मृत्यु पर विजय पाना चाहोगे ?
भक्त मुस्कुराया ;
कहा , प्रभु क्या मेरी परीक्षा ले रहे हो ?
मेरी तपस्या भंग करने को 
क्या मेनका को लाओगे ?
तुम  उर्वशी को ले आओ या मेनका को 
मेरे पास है रणचंडी , झाँसी की रानी 
चुटकियों में अपनी सौत को भगाएगी 
मुझे  मेरी समस्या से निवारण दिलवाएगी 
ये है उसी का 'आइडिया '!
मैं भी कहाँ चाहता हूँ अमर होना 
जानता हूँ जिंदगी भर 
बीवी की कमाई खाऊंगा 
एक नौकर का जीवन बिताऊंगा 
मुझे  भी  चाहिए इससे त्राण 
पर यदि चला गया बिना वरदान 
ऐसे भी मारा जाऊंगा 
भूख से बिलबिलाऊंगा
बीवी से पिटाॐगा
आप ही कुछ उपाय बताइए 
मुझे इस संकट से उबारिये 
वरदान पा कर भी मर जाऊँगा 
परपोते खरपोते का भी भार उठाऊंगा 
तब स्वयं के बोझ से दब जाऊँगा 
ये है मेरे परिवार का आइडिया 
आनेवाले समय में
जब नौकर नहीं मिला करेंगे 
तब आड़े वक्त 
मैं ही उनके काम आऊंगा 
उन्हें काम की मुसीबत से छुटकारा दिलाऊंगा 
वे लोग ड्राइंगरूम में बैठे टीवी देखा करेंगे 
मुझसे झाड़ू-पोंछा, बर्तन मंजवाया करेंगे 
सीढियों के नीचे
चटाई पर मुझे सुलाया करेंगे
मेरे लिए उनके घर में 
है जगह की कमी 
अभी भी है यही स्थिति
क्या इससे बेहतर होगी कभी 
आपकी शरण में आया हूँ 
झूठ नहीं बोलूँगा 
मैं कुछ रोज़ ही जीना चाहता हूँ 
दुनिया में कुछ आचा कर जाना चाहता हूँ 
पर मेरी बीवी आड़े आती है 
मुझको ललकारती है
कहना है उसका 
पहले परिवार का तो भला कर जाओ 
फिर समय मिला तो समाज का भी कर लेना 
इतनी ही है समाज की फ़िक्र 
तो प्रभु के पास जाकर 
मृत्यु पर विजय मांग लाओ 
मेरे परिवार को
नौकरों की समस्या से निजात दिलाओ 
सो प्रभु ! आपकी शरण में आया हूँ 
आप ही पार लगाऍगे
इस समस्या से उबारेंगे
प्रभु ने थोड़ा सोचते हुए कहा ,
अच्छा जाओ ,
अपनी पत्नी को 
बहू का डर दिखाओ 
सारे अधिकार छीन लो 
लक्ष्मी से मुक्त कर दो 
वह स्वयं ही तुम्हें मुक्त करेगी 
तुम से हाथ जोड़ लेगी 
हे मानव ! थोड़ा बुद्धि से काम लो 
फूट डालो , राज़ करो 
दोनों नारियों को लड़वा दो 
अधिकारों को भिड़ा दो 
तुम्हारा काम स्वयं हो जाएगा 
मैं भी वरदान देने से मुक्त हो जाऊँगा 
मानव को यह आइडिया पसंद आ गया 
प्रभु से विदा ले वह घर आ गया 
सो हे सभासदों ! तभी से 
पुरुष नारियों को
एक-दुसरे से लड़वाकर
आपस में भिड्वाकर
दूर खड़ा हँसता है 
नारी का शोषण करता है 
स्वयं सत्ता में रहता है !!
                                        प्रतिभा प्रसाद |
 

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