इंसाफ

जब उनसे हुई एक भारी भूल 
उन्होंने तब चुभाया मुझे शूल 
वे साफ़ बच जाएँगे था उन्हें भ्रम 
गलतियों का उनका चलता रहा क्रम
एक भूल से बचने को 
दुनिया में शान से सजने को 
लगाते रहे गलतियों का अम्बार
ऐसा होता रहा उनसे बारम्बार 
लोग थे बेताब 
कब उतरेगा उनका नक़ाब
समय का था इंतज़ार
जब जाग जाए उनका ज़मीर
औरत होने की ख़ता हम उठाते रहे हैं
इसका खामियाज़ा भी हम भरते रहे हैं
उनके हद से गुज़र जाने के बाद 
हमें झंडा इंसाफ का उठाना पड़ा है
कारवां बनेगा है इसका इंतज़ार 
आप भी हो जाइए तैयार 
यदि बाक़ी है थोड़ी सी भी ईमानदारी 
तो चलिए मिलकर साथ 
हमें घूँघट उठाना है बगुले के चेहरे से
मानसरोवर के इस नकली राजहंस का
कल्याणार्थ उठाना गया कदम 
भर देगा हम सब में भरपूर दम 
होगा यह एक मील का पत्थर 
जो होगा सबके लिए एक प्रश्नोत्तर 
औरत होने के बावजूद हम दिखा देंगे 
नकली राजहंस का पर्दा हम उठा देंगे |
                                                             प्रतिभा प्रसाद |

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