वह प्यार से एक बार बोल जाता
तो उसका क्या चला जाता !
सूख़ गई मेरी आत्मा
मर गई प्रेम की अमर बेल
मधुमास आता है
बरस - बरस जाता है
मुझको रुलाता है
प्रेम का अहसास भर करा जाता है
ख़ाली आचल को भरने की जगह
लहराकर लौट जाता है
अहसास करा जाता है
तुम हो रिक्त
कभी न हो सकोगे सिक्त
प्रेम इश्वरीय देन है
तुम्हारा रुदन येन-केन-प्रकारेण है
मधुमास को चले जाने दो
आँचल को लहराने दो
कमर कसो
कर्म में जुट जाओ
यही तुम्हारी नियति है
प्रेम बाँटना भर शेष है
प्रेम लेने को क्यूँ विकल है
देने में जो संतुष्टि है
वही तो मन की पुष्टि है
देना भर तेरा काम है
प्रेम भरा संसार है
लेकर तू क्या जाएगा ?
यहीं तो सब छोड़ जाएगा !!
प्रतिभा प्रसाद |
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