झुठ

झुठ के खिडकी दरवाजे
छल का घर मे रहना
क्या रखा है ऐसे घर में
जहां सच हो सपना
रिश्ता हो जब छल से सींचा
रिश्तों मे खिचातानी
छल के कुनवे भर जायेगें
नही कहीं सच का पानी
झुठ के खिडकी दरवाजे
सच को ढक नही पाते
छल के कनवे लड लड कर
आपस में मर जाते
अन्तिम विजय सच की होती
होता मन अभिमानी
आओ चल कर प्रण कर लेते
सच जीवन का सानी
सच में रहना
सच में जीना
तप करना है ग्यानी
सच की यही कहानी
स्व रचित. प्रतिभा

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