सास संहारक मंत्र (Translated in German language)

सास बहू के व्यवहार से तंग - परेशान  ,
बहू सास की हुकूमत से आतंकित- हैरान
जीवन - नैया में हाथ पाँव मारती
तलाशती रही किनारा
कैसे हो बुढ़िया से छुटकारा
अचानक मानो बिजली-सी कौंधी
बहू एक वैध के पास पहुची
याचना की एक ऐसे जहर की
जो आहिस्ता - आहिस्ता अपना काम करे
बुढ़िया का काम तमाम करे
लोगों को जरा भी उस पर शक न हो
जहर अपना काम कर जाए
बुढ़िया चुपचाप मर जाए । 
बैध जी चकराए
तीस दिनों के लिए
तीस खुराक थमा कर मुस्कुराए
साथ ही यह बात भी समझाई
किसी को तुम पर ज़हर देने का शक न हो
इसलिए रोज नए - नए पकवान बनाना
और एक पुड़िया मिलाकार खिलाना
अति मधुर व्यवहार से लोगों को रिझाना
महीना पूरा होते ही तुम्हारा काम हो जाएगा
ज़हर अपना काम कर जाएगा


बहु ने लगन से ज़हर का जुगत लगाया
नित नए व्यंजनों से सास को रिझाया
बाकी का काम मधुर व्यवहार कर गया


सास रोज पड़ोसन से करने लगी बहु का गुणगान ,
बहु हैरान परेशान !
दवा खत्म होने को थी सारी
अब बुढ़िया लगाने लगी प्यारी
ज़हर का आखिरी खुराक
ज़मीर ने दिया जवाब
भागी - भागी वैधजी के पास पहुंची
पाँव पकड़ लिये
सास को बचाने की गुहार लगाई
वैधजी मुस्कुराये , कहा
दवा तो अपना काम कर गई
अब बुढ़िया को बचाना मुश्किल है
तुम्हारी सास तो मर गई
अब घर जाओ
चैन की वंशी बजाओ
साथ ही यह नसीहत की खुराक भी लेती जाओ
रोज नए व्यंजन बनाना
मधुर बोलना ,
शिष्ठ्ता से पेश आना
तो सास स्वयं मर जायेगी
सास ही माँ नज़र आएगी


प्रतिभा प्रसाद

प्रश्नोतर (Translated in German language)

आई मैं जब काम से देर 
इज्ज़त पे लगने लगा प्रश्नों का ढेर 
था यह रोज़ का सिलसिला 
अनाम अनजान प्रेमी 
न जाने कहाँ से आ 
था बीच में खड़ा
इससे निकलने की न थी कोई राह
नौकरी छोड़ भी दूँ तो 
घर चलाने की थी समस्या 
परिवार बड़ा था 
खर्चा मुंह बाये खड़ा था 
प्रश्नों  की बौछार से मैं लहूलुहान थी 
मरने को तैयार थी |
तभी माँ ने समझाई एक तरक़ीब
कुछ महीनों की छुट्टी ले घर बैठ गई
प्रश्नों के ढेर से निकल गई 
समय से पति को दफ्तर भेज 
घर में आराम से काम निपटाती
मस्ती में गुनगुनाने लगी थी 
चेहरे की रौनक वापस आने लगी थी 
तभी पति के साथ-साथ 
सास की सांस अटकने लगी थी 
ख़र्चे की तंगी खटकने लगी थी 
अनाम अनजान प्रेमी की सांस टूटने लगी थी 
ननद और देवर की जान सांसत में पड़ी थी 
इनका बुरा हाल था 
हाले बेहाल था 
स्कूटर घर में पड़ा था 
बस का सफ़र जारी था 
इनके देर से घर आने पर 
मैंने इज्ज़त पर उछाले प्रश्न 
ये मौन नज़रें झुकाए खड़े थे 
अपनी माँ-बहनों की नादानी पर 
पश्चाताप के आंसू रोए थे 
अनजान अनाम प्रेमी 
कपूर बन उड़ चुका था 
इज्ज़त की चादर मेरे कंधे पर थी 
मेरी नौकरी फिर से चल पड़ी थी !
                                                   प्रतिभा प्रसाद |