आई मैं जब काम से देर
इज्ज़त पे लगने लगा प्रश्नों का ढेर
था यह रोज़ का सिलसिला
अनाम अनजान प्रेमी
न जाने कहाँ से आ
था बीच में खड़ा
इससे निकलने की न थी कोई राह
नौकरी छोड़ भी दूँ तो
घर चलाने की थी समस्या
परिवार बड़ा था
खर्चा मुंह बाये खड़ा था
प्रश्नों की बौछार से मैं लहूलुहान थी
मरने को तैयार थी |
तभी माँ ने समझाई एक तरक़ीब
कुछ महीनों की छुट्टी ले घर बैठ गई
प्रश्नों के ढेर से निकल गई
समय से पति को दफ्तर भेज
घर में आराम से काम निपटाती
मस्ती में गुनगुनाने लगी थी
चेहरे की रौनक वापस आने लगी थी
तभी पति के साथ-साथ
सास की सांस अटकने लगी थी
ख़र्चे की तंगी खटकने लगी थी
अनाम अनजान प्रेमी की सांस टूटने लगी थी
ननद और देवर की जान सांसत में पड़ी थी
इनका बुरा हाल था
हाले बेहाल था
स्कूटर घर में पड़ा था
बस का सफ़र जारी था
इनके देर से घर आने पर
मैंने इज्ज़त पर उछाले प्रश्न
ये मौन नज़रें झुकाए खड़े थे
अपनी माँ-बहनों की नादानी पर
पश्चाताप के आंसू रोए थे
अनजान अनाम प्रेमी
कपूर बन उड़ चुका था
इज्ज़त की चादर मेरे कंधे पर थी
मेरी नौकरी फिर से चल पड़ी थी !
प्रतिभा प्रसाद |
इज्ज़त पे लगने लगा प्रश्नों का ढेर
था यह रोज़ का सिलसिला
अनाम अनजान प्रेमी
न जाने कहाँ से आ
था बीच में खड़ा
इससे निकलने की न थी कोई राह
नौकरी छोड़ भी दूँ तो
घर चलाने की थी समस्या
परिवार बड़ा था
खर्चा मुंह बाये खड़ा था
प्रश्नों की बौछार से मैं लहूलुहान थी
मरने को तैयार थी |
तभी माँ ने समझाई एक तरक़ीब
कुछ महीनों की छुट्टी ले घर बैठ गई
प्रश्नों के ढेर से निकल गई
समय से पति को दफ्तर भेज
घर में आराम से काम निपटाती
मस्ती में गुनगुनाने लगी थी
चेहरे की रौनक वापस आने लगी थी
तभी पति के साथ-साथ
सास की सांस अटकने लगी थी
ख़र्चे की तंगी खटकने लगी थी
अनाम अनजान प्रेमी की सांस टूटने लगी थी
ननद और देवर की जान सांसत में पड़ी थी
इनका बुरा हाल था
हाले बेहाल था
स्कूटर घर में पड़ा था
बस का सफ़र जारी था
इनके देर से घर आने पर
मैंने इज्ज़त पर उछाले प्रश्न
ये मौन नज़रें झुकाए खड़े थे
अपनी माँ-बहनों की नादानी पर
पश्चाताप के आंसू रोए थे
अनजान अनाम प्रेमी
कपूर बन उड़ चुका था
इज्ज़त की चादर मेरे कंधे पर थी
मेरी नौकरी फिर से चल पड़ी थी !
प्रतिभा प्रसाद |
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