नमन

खिलते पलाश को देखकर 
मन विचलित सा हो जाता है
यह सोचकर 
की धरती क्यूँ दहकती है?
प्रकृति क्यूँ बहकती है?
क्या वह मनुष्य के चरण देखकर 
अपना चलन बदलती है
ऐसा लगता है मानो
प्रकृति का हृदय धधक रहा 
क्यूँ वह यूँ जलता है?
जलकर नए प्राणियों को जीवन देता है
मुझे भी वह कोई ऐसा गुर सिखा जाती
मैं भी जलूं 
जलकर दधीचि की तरह 
अस्थियों का दान करूँ 
कर्ण की परंपरा का पालन करूँ
अंग प्रदेश का मान करूँ
इस धरती को प्रणाम करूँ !!
                                             प्रतिभा प्रसाद |

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