कहने को कोई अर्ज़ न हो
करने को कोई फ़र्ज़ न हो
इंसान का जाने क्या होगा ?
इस अर्ज़-फ़र्ज़ के मेले में
इस क़र्ज़ का न जाने क्या होगा ?
क़र्ज़ फ़र्ज़ का बाक़ी हो तो
इंसान कहाँ रह पाएगा ?
मंथन भर मेरा काम रहा
करना न कोई विश्राम रहा
जग को सन्देश सुनाना है
इस अर्ज़-फ़र्ज़ से बाहर आ
अब फ़र्ज़ को पूरा कर ले तू
विश्राम शांति मिल जाएगी
मधुघट तू पा जाएगा
क्लांति को दूर भगाएगा
यदि नहीं कर पाया ऐसा
तो इंसान का जाने क्या होगा ?
प्रतिभा प्रसाद |
करने को कोई फ़र्ज़ न हो
इंसान का जाने क्या होगा ?
इस अर्ज़-फ़र्ज़ के मेले में
इस क़र्ज़ का न जाने क्या होगा ?
क़र्ज़ फ़र्ज़ का बाक़ी हो तो
इंसान कहाँ रह पाएगा ?
मंथन भर मेरा काम रहा
करना न कोई विश्राम रहा
जग को सन्देश सुनाना है
इस अर्ज़-फ़र्ज़ से बाहर आ
अब फ़र्ज़ को पूरा कर ले तू
विश्राम शांति मिल जाएगी
मधुघट तू पा जाएगा
क्लांति को दूर भगाएगा
यदि नहीं कर पाया ऐसा
तो इंसान का जाने क्या होगा ?
प्रतिभा प्रसाद |
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