युद्ध की आंधियाँ त्रासदी बन बह चलीं
विश्व मौन मूरत बना रहा अविचलित
हूक अन्दर उठ रही बंद मुट्ठी खुल चली
हाथ में पत्थर उठा प्रतिरोध करने लगी
प्रतिभा प्रसाद |
विश्व मौन मूरत बना रहा अविचलित
हूक अन्दर उठ रही बंद मुट्ठी खुल चली
हाथ में पत्थर उठा प्रतिरोध करने लगी
प्रतिभा प्रसाद |
No comments:
Post a Comment