Meri Kavitayen ( झंकार काव्य संग्रह )
Kavitayen from My book "JHANKAR (Kavya Sangrah)" (Hindi Poems)
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"अनुराग"
तुम जो गयी साथ उनके
प्राण मेरे ले गयी
जीत कर वे तुम्हे
खुद जितेश हो गए
आसू थे जो पलक में
दुलक कर मोती बने
इन मोतियों के पार जाकर
चुने है जो सीप तुमने
बाहुपास है सुहाग का
प्रेम का अनुराग है
प्रेम का अनुबंध तेरा
अचल अविचल रहे
प्रतिभा प्रसाद |
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