किसी की मांग का सिंदूर
चुरा लेने की
दुष्टा एकता ने
चलाई है मुहिम
और डाली है नींव
अमंगल परंपरा की
किन्तु हम विचलित न होते ज़रा
है हमारे प्रेम में इतनी ताक़त
वह लौट आता है मुझी में
सिंदूर की लाज बचता है
ज़िन्दा हो जाती है हमारी संस्कृति
फिर एक बार
विजयी होता है प्रेम
फिर एक बार
जब-जब छल छलता रहेगा
षड़यंत्र से हमारा शिकार करता रहेगा
तब-तब प्रेम उसे बचाता रहेगा
प्रेम के आगे हारी है दुनिया
झुकाता रहा है सबों का 'स्व'
क्योंकि है यह एक मूलमंत्र
आचरण में जो इसे उतारेगा
कभी हार न पाएगा
प्रेम है भेदविहीन
हम सब हैं उससे दीन-हीन
आओ , आज संकल्प लें
प्रेम से जीतेंगे दुनिया
आचरण में इसे उतारेंगे
विश्व को फिर से पुराना मंत्र देंगे
वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देंगे
हम प्रेममय होंगे
प्रेम हम में होगा !
प्रतिभा प्रसाद |
चुरा लेने की
दुष्टा एकता ने
चलाई है मुहिम
और डाली है नींव
अमंगल परंपरा की
किन्तु हम विचलित न होते ज़रा
है हमारे प्रेम में इतनी ताक़त
वह लौट आता है मुझी में
सिंदूर की लाज बचता है
ज़िन्दा हो जाती है हमारी संस्कृति
फिर एक बार
विजयी होता है प्रेम
फिर एक बार
जब-जब छल छलता रहेगा
षड़यंत्र से हमारा शिकार करता रहेगा
तब-तब प्रेम उसे बचाता रहेगा
प्रेम के आगे हारी है दुनिया
झुकाता रहा है सबों का 'स्व'
क्योंकि है यह एक मूलमंत्र
आचरण में जो इसे उतारेगा
कभी हार न पाएगा
प्रेम है भेदविहीन
हम सब हैं उससे दीन-हीन
आओ , आज संकल्प लें
प्रेम से जीतेंगे दुनिया
आचरण में इसे उतारेंगे
विश्व को फिर से पुराना मंत्र देंगे
वसुधैव कुटुम्बकम का नारा देंगे
हम प्रेममय होंगे
प्रेम हम में होगा !
प्रतिभा प्रसाद |
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