प्रश्न

सृजन के नाम पर 
बहकावे की गंध में
खो जाती है जिन्दगी 
एक यक्षप्रश्न तैरता है
तुम  हो कौन ?
स्वयं सृष्टीविधाता सृजनकर्ता 
या स्वयं अपने निर्माता 
सोचो नहीं पकती बात 
कोरी कच्ची हांड़ी
बात अधूरी रहती 
मंज़िल से कोसों दूर 
अँधेरी बदनुमा जिंदगी 
यक्षप्रश्न की तरह घूरती है तुम्हें
बहकावे की गंध से
तिलमिलाता मन
सत्य की राह की तलाश में
रह जाता है अधूरा
बेघरबार 
प्रलोभन पर लगा दो पहरा 
निकालो सच्चा भारतीय मन 
पसीने की गंध में कई सीढियाँ चढ़ 
आत्मविश्वास से भर जाओगे 
मुस्कुराओगे 
अगली पीढ़ी को मशाल थमाओगे
बहकावे की गंध से दूर 
सृजन का संसार 
स्वाभिमान मुस्कुराएगा 
सम्मान दिलाएगा 
बदनुमा जिंदगी से उन्हें निकाल लाएगा |
                                                             प्रतिभा प्रसाद |


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