हमारी हर अभिव्यक्ति पर
है उनका सख्त पहरा
पहरे में हो गई यदि कहीं चूक
तब भी मेरी संवेदना हो जाती है मूक
उनके पहरे से होती है तकलीफ़
पर मैं हूँ उनके प्यार से वाकिफ़
वे मुझे कहीं खो न दें
इसलिए हैं सख्त
लेकिन निकाल नहीं पाते
मेरे लिए वक्त
प्यार के लिए उनकी अभिव्यक्ति
कहीं अन्दर है बंद
इस वजह से बन नहीं पता
प्यार का कोई छंद
वे अकुलाते हैं तड़पते हैं
रह जाते हैं खामोश
फिर भी हमारा संसार
चलता है कमोबेश !
प्रतिभा प्रसाद |
है उनका सख्त पहरा
पहरे में हो गई यदि कहीं चूक
तब भी मेरी संवेदना हो जाती है मूक
उनके पहरे से होती है तकलीफ़
पर मैं हूँ उनके प्यार से वाकिफ़
वे मुझे कहीं खो न दें
इसलिए हैं सख्त
लेकिन निकाल नहीं पाते
मेरे लिए वक्त
प्यार के लिए उनकी अभिव्यक्ति
कहीं अन्दर है बंद
इस वजह से बन नहीं पता
प्यार का कोई छंद
वे अकुलाते हैं तड़पते हैं
रह जाते हैं खामोश
फिर भी हमारा संसार
चलता है कमोबेश !
प्रतिभा प्रसाद |
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