ख़्वाब

महक जाने को दिल करता 
चहककर जो तुम आते 
दुनिया मेरी बदल जाती 
ख़्वाब पूरा हो जाता 
सपनों में खो जाना 
नहीं चाहते मैं और तुम 
घर हो अपना-अपना सा 
क्यारी में हो बेली-चमेली 
गुलाबों की कतारों से
महक इतनी आती हो
की खुशबू की मदहोशी में 
हम दोनों ही नहा जाएँ 
गुलाबी रंग तेरा ले,
गुलाबी होंठ मेरे ले 
नई कली हम दोनों की ,
तेरी मेरी जैसी हो 
फिर गूंजेगा आशियाँ अपना 
किलकारियों की तानों पे
हम सब नाचेंगे ,
खूब गाने गाएँगे
लोरियां अपनी धुन बजाएगी 
चांदनी से नहाएगी 
गुलाबों की महक में
फिर हम दोनों भींग जाएँगे |
                                            प्रतिभा प्रसाद |

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