आशा

अंतर्मन में जब हो पीड़ा 
जग बैरी हो जाता है 
शैतान है अन्दर 
दर्द का कोहरा 
जीवन धूमिल बनाता है
आशा में विश्वास छुपा है
गंध ख़ुशी की आती है
तिमिर छेद कर अन्दर बिजली 
हर्ष का दमन थाम लिया 
क्षणिक भले हो ख़ुशी तुम्हारी 
आनंद असीम दे जाती है
मन की आशा डोर सम बन 
सौरभ सम हो जाती है|
                                      प्रतिभा प्रसाद |

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