दरवाज़े पर खड़ा था
एक भिखारी
हाथ-पाँव सलामत
एक बासी रोटी के लिए
फैलाए था हाथ
कहा- माँ जी काम की दुहाई मत देना
यहाँ तो पढ़े - लिखों को नौकरी नहीं
मैं तो अनपढ़ हूँ , गंवार हूँ
मन से लाचार हूँ
फिर भी काम के बाद
रोटी मिलनी है तो
ला दो कुदाल
बाग़ तुम्हारे लगा दूंगा
फूलों से सज़ा दूंगा
पर भीख में देना मुझे
एक विश्वास
क्या भर पेट खिलाओगी खाना?
कई जगह काम किया हूँ
यूँ ही भगा दिया गया हूँ
यदि आतंकवादी बन जाऊं
दो-चार को बम से उड़ा दूँ
तब होगा बदन पर कपड़ा
खाने को रोटी
नहीं कहीं होगा फैलाना हाथ
मौज मस्ती करूँगा
आराम से रहूँगा
पर मेरी आत्मा है अभी जीवित
राष्ट्रप्रेम है जोर मार रहा
बेटा, भीख मांग लेना
भूखों मर जाना
पर देशप्रेम कभी न छोड़ना!
पर देशप्रेम कभी न छोड़ना!!
प्रतिभा प्रसाद |
एक भिखारी
हाथ-पाँव सलामत
एक बासी रोटी के लिए
फैलाए था हाथ
कहा- माँ जी काम की दुहाई मत देना
यहाँ तो पढ़े - लिखों को नौकरी नहीं
मैं तो अनपढ़ हूँ , गंवार हूँ
मन से लाचार हूँ
फिर भी काम के बाद
रोटी मिलनी है तो
ला दो कुदाल
बाग़ तुम्हारे लगा दूंगा
फूलों से सज़ा दूंगा
पर भीख में देना मुझे
एक विश्वास
क्या भर पेट खिलाओगी खाना?
कई जगह काम किया हूँ
यूँ ही भगा दिया गया हूँ
यदि आतंकवादी बन जाऊं
दो-चार को बम से उड़ा दूँ
तब होगा बदन पर कपड़ा
खाने को रोटी
नहीं कहीं होगा फैलाना हाथ
मौज मस्ती करूँगा
आराम से रहूँगा
पर मेरी आत्मा है अभी जीवित
राष्ट्रप्रेम है जोर मार रहा
बेटा, भीख मांग लेना
भूखों मर जाना
पर देशप्रेम कभी न छोड़ना!
पर देशप्रेम कभी न छोड़ना!!
प्रतिभा प्रसाद |
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