मैं नदी हूँ
निरंतर बह रही हूँ
प्राण देने को हिमगिरि से झर रही हूँ
नित्य नए स्रोतों से
अलग-अलग नहरों में
हूँ प्रवाहित
रोकने का साहस
नहीं कोई कर पाता
प्राण देने की अपनी इच्छा
हूँ निरंतर चलती
पर युगों से ढोती मैं गंदगी
अवश हो चली हूँ |
प्रतिभा प्रसाद |
निरंतर बह रही हूँ
प्राण देने को हिमगिरि से झर रही हूँ
नित्य नए स्रोतों से
अलग-अलग नहरों में
हूँ प्रवाहित
रोकने का साहस
नहीं कोई कर पाता
प्राण देने की अपनी इच्छा
हूँ निरंतर चलती
पर युगों से ढोती मैं गंदगी
अवश हो चली हूँ |
प्रतिभा प्रसाद |
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