हरियाली

मौन बन
क्यूँ निरंतर घूमते हो
सच को चुपचुप में चुनते हो
जग में कैसी रीत निराली 
दुनिया है
नीति-मूल्यों से बिलकुल खाली
देना है
जग में कुछ कर्तव्य परायणता  का ज्ञान 
जग हो चला इससे 
कुछ बिलकुल अनजान
परिश्रम के मोती 
जब बिखरेंगे धरती पर
लहलहाएगी हरियाली 
इस धरती ,
इस पृथ्वी पर!!
                           प्रतिभा प्रसाद |

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